गुजरात
गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी संजीव राजेन्द्र भट्ट को 30 सितंबर को गिरफ्तार कर लिया गया। यह गिरफ्तारी अहमदाबाद में उनके निवास स्थान से हुई। उन्हें घाट लेदिया थाने ले जाया गया। इससे पहले सितंबर महीने में ही राज्य सरकार ने संजीव भट्ट को निलंबित कर दिया था। छह पन्ने के निलंबन पत्र में उन पर बिना छुट्टी के गायब रहने, विभागीय जांच समिति के सामने पेश नहीं होने और सरकारी गाड़ी के गलत इस्तेमाल का आरोप लगाया गया था। भट्ट पर धारा 341 (गलत ढंग से दबाव डालना), 342 (जबरदस्ती बंदी बनाकर रखना) और धारा 195 (सजा दिलवाने के लिए गलत सबूत पेश करना या गढ़ना) के तहत कार्रवाई की गई। गुजरात पुलिस ने 2002 दंगों से ही जुड़े एक मामले में राज्य के डीआईजी राहुल शर्मा के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। उन पर आरोप लगा कि उन्होंने गोधरा दंगों की जांच के दौरान अनुशासनहीनता दिखाई और गोपनीयता के कानून का उल्लंघन किया।
गौरतलब है कि संजीव भट्ट ने गुजरात सरकार के खिलाफ एक हलफनामा दाखिल किया था। जिसके अनुसार गोधरा कांड के बाद 27 फरवरी, 2002 को मुख्यमंत्री निवास पर हुई बैठक में नरेन्द्र मोदी ने पुलिस अधिकारियों से कहा था कि हिंदुओं को अपना गुस्सा उतारने का मौका दिया जाना चाहिए। उनके अनुसार वो खुद मुख्यमंत्री आवास में हुई बैठक में मौजूद थे। जबकि गुजरात सरकार का कहना है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि संजीव भट्ट मुख्यमंत्री आवास में हुई बैठक में मौजूद थे।
संजीव भट्ट की गिरफ्तारी को विशेषज्ञ बदले की कार्रवाई मान रहे हैं। संजीव भट्ट के वकील ने अदालत में यह दलील दी है कि संजीव भट्ट जब साबरमती जेल के सुपरिटेंडेंट थे, तब हरेन पांड्या के हत्यारों ने उनसे कई खुलासे किए थे। इसलिए मोदी सरकार उनको प्रताडि.त कर रही है। उन पर अपने मातहत काम कर चुके पुलिस कांस्टेबल बीके पंत पर दबाव डालकर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ हलफनामा दाखिल करवाने का आरोप लगाया गया। बीके पंत ने वर्ष 2002 में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक हलफनामा दाखिल किया था, लेकिन बाद में उन्होंने कहा था कि ये हलफनामा उन पर दबाव डालकर दिलवाया गया था। उनका कहना था कि चूंकि संजीव भट्ट उनके अधिकारी थे इसलिए वे इससे इंनकार नहीं कर पाए। पंत ने पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करवाई थी।
भट्ट अकेले शिकार नहीं हैं। राहुल शर्मा के खिलाफ दायर आरोप पत्र को भी इसी नजरिये से देखा जा रहा है। राहुल शर्मा ने 2004 में कई अहम सूचनाएं और दस्तावेज नानावती आयोग को सौंपे थे। नानावती आयोग का गठन गुजरात दंगों की जांच के लिए किया गया था। 2010 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दंगों की जांच के लिए विशेष जांच दल का गठन किया गया, तब शर्मा ने वही दस्तावेज इस जांच दल को भी सौंपे। शर्मा के अनुसार इन दस्तावेजों में 2002 के हिंदू-मुसलमान दंगों के दौरान राज्य सरकार के मंत्रियों, आला पुलिस अधिकारियों के कॉल डिटेल, उनके फोनों की लोकेशन वगैरह का ब्यौरा है।
मानवाधिकार संगठनों और विपक्षी दलों का मानना है कि चूंकि इन अधिकारियों ने दंगों की जांच में मददगार दस्तावेज जांच समिति को उपलब्ध करवाए और सरकार के खिलाफ जाने का साहस दिखाया, इसी कारण इन्हें टार्गेट किया जा रहा है। इनके खिलाफ दायर हलफनामों को बदले की कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है। इन घटनाक्रमों पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका चौधरी ने कहा कि इस गिरफ्तारी से मुझे जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ। नरेन्द्र मोदी सरकार वही कर रही है, जिसकी उससे अपेक्षा थी। इससे जाहिर होता है कि नरेन्द्र मोदी किस तरह व्यवहार करते हैं।
अदालत में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा नियुक्त एफिडेविट जांच अधिकारी ने अपना बयान दर्ज करवाया कि संजीव भट्ट ने जो एफिडेविट सुप्रीम कोर्ट में दिया था वो जांच में फर्जी पाया गया। वहीं संजीव भट्ट के विरोधी उनपर आरोप लगा रहे हैं कि अगर उनके पास हरेन पाड्या की हत्या से जुड.े सबूत थे, तो वो 8 साल तक चुप क्यों रहे। जिस कैदी के हवाले से सबूतों का खुलासा करने की बात कही गई, उसने मीडिया के सामने साफ इनकार कर दिया कि उसने संजीव भट्ट को कोई बात बताई है। इस इनकार के पीछे कारण कुछ भी हो सकता है। मगर इतने लंबंे समय तक उनकी चुप्पी संदेह तो पैदा करती ही है।
अतीत में संजीव भट्ट पर जितने भी केस दर्ज हुए, उन सबको अदालत के सामने लाया जा रहा है। इनमें सुमेर सिंह राजपुरोहित नार्कोटिक्स केस, जामनगर में हिरासत में पीट-पीट कर हत्या का केस, पोरबंदर के कमलानगर थाने में दर्ज एक व्यक्ति को पूछताछ के दौरान बिजली के करंट देकर आजीवन लकावाग्रस्त बना देने का केस, आदि शामिल हैं। इसके अलावे अहमदाबाद के पास अडालज में नर्मदा केनाल के करीब 2000 वार की सरकारी जमीन पर कब्जा करने का आरोप लगाया गया है। 1996 मेें हुए सिपाही पद की भर्ती के मामले में भी उनपर बड.ा घोटाला करने के आरोप लगाए गए। उनपर गुजरात के सहायक अटार्नी जनरल का ई मेल हैक करके कई गोपनीय जानकारियां चुराने का केस दर्ज है।
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप तो चलता ही रहता है। क्या सही है, क्या गलत, इसका फैसला या तो जांच समिति करेगी या अदालत। मगर इतना तय है कि इस पूरे घटनाक्रम पर उठे विवाद से गुजरात सरकार और खासकर मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की काफी किरकिरी हुई है।
आईपीएस लॉबी साथ आयी
गुजरात के 35 आईपीएस अफसर संजीव भट्ट के समर्थन में आ गए हैैं। सूत्रों के अनुसार आईपीएस एसोसिएशन की बैठक में बकायदा यह प्रस्ताव पास किया गया है और फैसला लिया गया है कि संजीव भट्ट के परिवार को तमाम संभावित मदद की जाएगी। इस संदर्भ में तीन सीनियर आईपीएस अफसर अतुल करवाल (ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर), वीएम पारधी (आईजी बॉर्डर रेंज) और प्रवीण सिन्हा (सीनियर आईजी) संजीव भट्ट के घर समर्थन में पहुंचे और उनकी पत्नी श्वेता भट्ट को हर तरह की मदद का आश्वासन दिया। इस बात की पुष्टि सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने भी की।
संजीव भट्ट: प्रशासनिक सफर
संजीव भट्ट ने आईआईटी मुंबई से पोस्ट ग्रेजुएट किया। वर्ष 1988 में भारतीय पुलिस सेवा में आए। दिसंबर 1999 से सितंबर 2002 तक राज्य खुफिया ब्यूरो में खुफिया उपायुक्त के रूप में कार्यरत रहे। गुजरात के आंतरिक सुरक्षा से जुड़े सभी मामले उनके अधीन रहे। इसमें सीमा सुरक्षा और तटीय सुरक्षा के अलावा अतिविशिष्ट जनों की सुरक्षा भी शामिल रहे। इस दायरे में मुख्यमंत्री की सुरक्षा भी आती थी। संजीव भट्ट नोडल ऑफिसर भी थे, जो कई केन्द्रीय एजेंसियों और सेना के साथ खुफिया जानकारियों का आदान-प्रदान भी करते थे। 2002 दंगों के समय संजीव इसी पद पर थे।
वर्तमान में 47 वर्षीय संजीव भट्ट गुजरात के जूनागढ. में राज्य रिजर्व पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र के प्रिंसिपल के रूप में कार्यरत थे। यहीं से विवादों का सिलसिला शुरू हुआ और उन्हें पहले निलंबन और फिर गिरफ्तारी झेलनी पड़ी।
सुरक्षा की मांग
संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट ने केन्द्रीय मंत्री पी ़ चिदंबरम को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि गुजरात पुलिस ने उनके पति के साथ आतंकवादियों जैसा सलूम किया है। श्वेता ने कुछ समय पहले भी चिदंबरम को एक पत्र लिखा था, जिसमें संजीव भट्ट की सुरक्षा को लेकर चिंता जताते हुए कहा गया था कि बदले की भावना से प्रेरित प्रशासन से उनके पति की जान को खतरा है। उन्होंने प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि-भट्ट को शहर की अपराध शाखा की एक गंदी, मलिन और बदबूदार कोठरी में रखा गया है। श्वेता भट्ट के पत्र के जवाब में केन्द्र सरकार ने गुजरात सरकार से कहा कि वो संजीव भट्ट और उनके परिवार को पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराए।